What is inductor in hindi, इंडक्टर का कार्य,परिभाषा,उपयोग एवं प्रकार

What is inductor in hindi, इंडक्टर का कार्य एवं इसके दैनिक जीवन उपयोगी की चर्चा इस आर्टिकल में विस्तारपूर्वक किया गया है।

inductor का meaning क्या है ?

inductor = प्रेरक

Inductor का Definition क्या है?

Inductor एक ऐसा component है जो चुंबकीय क्षेत्र ( magnetic field) में electrical ऊर्जा को इकट्ठा (store) और छोड़ने (release ) का काम करती है परन्तु यह ऊर्जा प्रत्यक्ष रूप से इलेक्ट्रिक करेंट के रूप में होती हैं।

What is inductor in hindi एवं inductor का Mathematically द्वारा परिभाषित

Inductor आम तौर पर एक कोर के चारों ओर लपेटे गए तार के कुंडल से बना हुआ एक ऐसा passive electronic components है जो चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) मे ऊर्जा को इकट्ठा (store) और छोड़ने (release ) का काम करती है जब इन तारो के कुंडल मे से बिजली को सप्लाई किया जाता है।

capacitor मे इकट्ठा (store) ऊर्जा को वोल्टेज के रूप में उपयोग किया जा सकता है जबकि inductor मे इकट्ठा (store) ऊर्जा को इलेक्ट्रिक करेंट के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इसलिए inductor का उपयोग हम अस्थायी ( temporary ) इलेक्ट्रिक करेंट स्रोत के रूप में कर सकते हैं। Inductor का यह करेंट स्रोत बहुत ही कम समय के लिए होती है।

किसी भी सर्किट में जब जब output करेंट की मान ( quantity) मे उतार चढ़ाव आती है तब inductor आउटपुट करेंट की उतार चढ़ाव को एक समान रखने में मदद करती है और इस प्रकार एक समान करेंट का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरण द्वारा उपयोग में लाया जाता है।

वैसे inductor ऊर्जा को इकट्ठा (store) करती है। इस तरह inductor मे इकट्ठा (store) की जा सकने वाली ऊर्जा की मात्रा inductance पर निर्भर करती है। Inductance को हेनरी (Henry) मे मापा जाता है या जिसे हम SI unit भी कह सकते हैं। Inductance को ‘L’ से प्रदर्शित किया जाता है।

अब हम inductance को mathematically समझने की कोशिश करेंगे ।

अत : inductor का inductance , प्रति यूनिट करेंट से तारो के कुंडल पर बनने वाले मैग्नेटिक flux के समान होती हैं।

इसलिए L = Φ/I

यहां L= inductor का inductance , Φ= magnetic flux linkage or कुल magnetic field जो inductor से गुजरती है। , I = current

L = Φ/I सूत्र के अनुसार magnetic flux बढ़ने से inductance भी बढ़ेगी ।

Inductance को व्यक्त करने के लिए दूसरी ओर एक सूत्र है जो नीचे दी गई है।

L = μN2A/l

यहां , L= inductance, μ= core material का permeability जिस पर कुंडल बना है। , N= coil को कितना बार लपेटा गया है। , A = coil का cross section area , I = coil की लंबाई ।

Inductance क्या है और इसे कैसे बढ़ाये ?

Inductor मे जो ऊर्जा इकट्ठा करने की क्षमता होती है उसे ही inductance कहा जाता है।

Inductor के inductance ‘L’ = μN2A/l सूत्र द्वारा हम पाते हैं —

core material का permeability (μ) के साथ inductance directly proportional होती है इसलिए permeability बढ़ाने से inductance भी बढ़ेगी।

Coil की लपेटो की संख्या(N) के साथ inductance directly proportional होती है इसलिए coil की लपेटो की संख्या को बढ़ाने से inductance भी बढ़ेगी।

Coil की cross section area (A) के साथ inductance directly proportional होती है इसलिए coil की cross section area को बढ़ाने से inductance भी बढ़ेगी।

coil की लंबाई के साथ inductance inversely proportional होती है इसलिए coil की लंबाई को जितना छोटा किया जाए उतना inductance बढ़ेगी।

Inductor का उपयोग क्यों किया जाता है? एवं इंडक्टर का काम क्या है?

निचे कुछ कारणो की चर्चा की गई है ।

Output source current को स्थिर (stable) करने के लिए —

किसी भी सर्किट का output source करेंट अस्थिर ( unstable) बनी रहती है या output करेंट मे उतार चढ़ाव (fluctuations) होती रहती है । किसी सर्किट की उतार चढ़ाव (fluctuations) output करेंट को inductor लगा कर इसे स्थिर (stable) बनाया जाता है।

जब सर्किट में output source करेंट मे अचानक वृद्धि होती तब inductor मे बदलती मैग्नेटिक फील्ड द्वारा back emf बनती है जिससे induced current उत्पन्न होती है और यह source करेंट के विपरीत दिशा मे होती है इसलिए अचानक वृद्धि करेंट का विरोध करती है या अचानक वृद्धि करेंट को धक्का मारती है जिसके परिणामस्वरूप अचानक वृद्धि करेंट नियंत्रित रहती है।

उसी प्रकार जब सर्किट में output source करेंट में अचानक कमी होती तब inductor मे बदलती मैग्नेटिक फील्ड द्वारा back emf बनती है जिससे induced current उत्पन्न होती जिसके कारण यदि source करेंट मे कमी आती है तब back emf द्वारा induced current उस सर्किट मे कुछ समय के लिए खुद की उत्पन्न की गई induced current को छोड़ेगी जिससे source करेंट में अचानक कमी संतुलन (balance ) हो जाती है।

Inductor का उपयोग कहां कहां किया जाता है ?

(1) inductor का उपयोग induction मोटर मे किया जाता है।

(2) inductor का उपयोग transformer मे किया जाता है।

(3) inductor का उपयोग filter के रूप भी मे किया जाता है।

(4) inductor का उपयोग choke के रूप में किया जाता है जिससे high-frequency सिग्नल को ब्लॉक होती है।

इंडकटर का कार्य सिद्धांत (working principle of Inductor)

इंडकटर का कार्य सिद्धांत electromagnetic induction पर आधारित है।

इंडकटर का कार्य सिद्धांत समझने के लिए आपको electromagnetic induction की कार्य सिद्धांत को समझना है।

तो आइए electromagnetic induction की कार्य सिद्धांत को समझे

electromagnetic induction एक प्रक्रिया (Process) है जिससे coil मे electromotive force या EMF उत्पन्न किया जाता है । electromotive force या EMF किसी भी बंद चालक में वोल्टेज को उत्पन्न करने की क्षमता रखती है। यदि हम बंद चालक के किसी दो बिंदुओ के बीच वोल्टेज को उत्पन्न करेंगे तो बंद चालक मे विद्युत धारा ( electric current) प्रवाहित होगी।

electromagnetic induction प्रक्रिया (Process) को तीन विधियों द्वारा संचालित किया जा सकता है।

(1) – स्थिर coil के चारो ओर चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) को बदलकर किया जाता है।

( 2) – स्थिर चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) के चारो ओर coil को घुमाकर किया जाता है।

( 3) – किसी coil मे बहने वाली विद्युत धारा ( electric current) की मात्रा को बदलकर किया जा सकता है। यही विधि inductor मे होती है जिससे electromagnetic induction की प्रक्रिया (Process) होती रहती है।

आइए electromagnetic induction की तीसरी विधि पर चर्चा करेंगे क्यूंकि इसी विधि द्वारा ही inductor मे electromagnetic induction की प्रक्रिया होती हैं।

जब किसी coil मे विद्युत धारा प्रवाहित होती है तब coil के चारो ओर चुंबकीय क्षेत्र ( magnetic field) बनती है। जैसा की उपर विधि (1) मे बताया जा चुका है कि यदि स्थिर coil के चारो ओर चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) को बदला जाए तो electromagnetic induction की प्रक्रिया होगी । अत: स्थिर coil के चारो ओर चुंबकीय क्षेत्र मे बदलाव करने के लिए हमें coil मे बहने वाली विद्युत धारा (electric current) की मात्रा मे बदलाव करने की जरूरत है।

अर्थात जब जब coil मे बहने वाली विद्युत धारा (electric current) की मात्रा मे बदलाव होती है तभी ही चुंबकीय क्षेत्र मे बदलाव आयेगी जिसके परिणामस्वरूप coil मे electromagnetic induction की प्रक्रिया होगी जिससे electromotive force या EMF उत्पन्न होगी ।

अत: coil की केवल इसी स्तिथि (condition) मे ही यह coil एक वोल्टेज स्रोत ( source) की तरह व्यवहार ( behave) करेगी लेकिन यह सर्किट की मुख्य वोल्टेज स्रोत के विपरीत होती है एवं जब तक coil की मुख्य विद्युत धारा मे बदलाव होते रहेगी तब तक ही coil एक वोल्टेज स्रोत ( source) की तरह व्यवहार ( behave) करेगी। चूंकि इस स्तिथि (condition) मे coil एक वोल्टेज स्रोत ( source) की तरह व्यवहार ( behave) करती है इसलिए coil की इस वोल्टेज स्रोत से अपनी खुद की विद्युत धारा ( electric current) को भी प्रवाहित करेगी परंतु यह विद्युत धारा ( electric current) coil की मुख्य विद्युत धारा के विपरीत होगी और यह मुख्य विद्युत धारा का विरोध करती है।

जब coil मे बहने वाली विद्युत धारा (electric current) की मात्रा मे कोई बदलाव नहीं होती है या विद्युत धारा एक समान रहती है तब coil मे बनने वाले चुंबकीय क्षेत्र भी एक ही समान रहती है अर्थात चुंबकीय क्षेत्र मे कोई भी बदलाव नही होगी एवं इस स्थिति मे coil एक साधारण चालक की तरह ही कार्य करेगी।

इंडक्टर की संरचना/ बनावट कैसे होती है

इंडक्टर की संरचना बहुत सरल होती है । जब कोई कोर सामग्री मे चालक तार को लपेटा जाता है तब यह एक coil का रूप लेती है जिसे हम Inductor बोल सकते हैं।

इंडक्टर की संरचना के समय ध्यान देने योग्य कुछ बाते नीचे दी गई है –

inductor की बनावट की प्रक्रिया के समय हमे सही तारो और कोर सामग्री की चुनाव करना पड़ता है। कोर सामग्री ferromagnetic material का होना चाहिए जैसे लोहा । Coil बनाने के लिए जिस तार का उपयोग किया जाता है वो हमेशा कॉपर की तार को ही सही माना जाता है इसलिए हमे कॉपर तार को ही चयन करना चाहिए।

इसके बाद तारो की लपेटो ( turns) की संख्या पर भी निर्भर करती है।

वैसे तो कोर सामग्री के बिना भी केवल तार को लपेट कर इसे coil के रूप में बना लिया जाए तो भी ये inductor का ही काम करेगी।

Inductor कितने प्रकार के होते हैं?

वैसे तो inductor की बहुत सी प्रकार होती है लेकिन यहां inductor की केवल कुछ प्रकारों की ही चर्चा की गई है।

Inductor को हम दो मुख्य प्रकार में बांट सकते हैं पहला fixed inductor और दूसरी Variable inductor।

(1) Fixed inductor – वैसे inductor जिसकी inductance की क्षमता निश्चित (fixed) होती है Fixed inductor कहलाती है। इस प्रकार की inductor की inductance हमेशा एक समान रहती है। निचे कुछ Fixed inductor की उदाहरण दी गई है।

Air core inductors – इस प्रकार की inductor मे कोर की जरूरत नही होती हैं। इसमे केवल तार को coil के रूप में लपेटने से ही inductor की निर्माण होती हैं। इसकी inductance हमेशा एक समान ही रहती है।

Iron core inductors — इस प्रकार की inductor मे iron कोर की जरूरत होती हैं। इस iron कोर के चारो तरफ तार को लपेटा जाता है।इसकी inductance भी हमेशा एक समान ही बनी रहती है।

(2) Variable inductor – वैसे inductor जिसकी inductance की क्षमता अनिश्चित (unfixed) होती है variable inductor कहलाती है। इस प्रकार की inductor की inductance को हम अपने इच्छानुसार हमेशा बदल सकते हैं।

Inductor का कनेक्शन कैसे करे

इंडक्टर का कनेक्शन दो प्रकार से किया जाता है —

(1) Series Connection

(2) Paraller Connection

Inductor का Series Connection —

Series Connection मे इंडक्टर का end-to-end कनेक्शन किया जाता है जैसे चैन एक दूसरे के साथ जुड़ी रहती है। इसमें पहला inductor का अंतिम छोर दूसरी inductor के अंतिम छोर के साथ कनेक्शन किया जाता है ओर इसी तरह सभी inductor का कनेक्शन भी इसी प्रकार से किया जाता है। Inductor Series Connection मे सभी inductor मे करेंट एक समान रहती है पर वोल्टेज अलग अलग होती है।

जब इस तरह से सभी इंडक्टर का series Connection किया जाता है तब सभी इंडकटर का कुल inductance , प्रत्येक इंडक्टर के inductance के योग के बराबर होती है।

इसलिए , Total inductance ( L) = L1+L2+L3

Inductor का Parallel Connection —

Inductor का parallel connection मे सभी inductor को एक समांतर में जोड़ा जाता है। इस प्रकार से कनेक्शन करने पर प्रत्येक इंडक्टर मे वोल्टेज एक समान होगी लेकिन करेंट सभी में अलग अलग होगी।

Parallel Connection करने पर सभी इंडक्टर की कुल inductance का व्युत्क्रम प्रत्येक inductor के inductance का व्युत्क्रमो के योग के बराबर होती है ।

जब तीन इंडक्टर L1 , L2 और L3 को parallel connection किया जाता है तब तीनो में करेंट अलग अलग होगी ।

चूंकि L = Φ/i इसलिए i= Φ/L

तीनो में कुल करेंट ( i) = i1 + i2 + i3

Φ/L = Φ/L1 + Φ/L2 + Φ/L3

Φ(1/L) = Φ(1/L1 + 1/L2 + 1/L3)

1/L = 1/L1+ 1/L2 + 1/L3

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