What is Capacitor in hindi कैपेसिटर का कार्य,परिभाषा,प्रकार एवं उपयोग आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन इस आर्टिकल मे किया गया है।
Table of Contents
Capacitor का meaning
Capacitor = संधारित्र
Capacitor = धारिता तंत्र (capacity mechanism)
Capacitor का Definition
Capacitor एक ऐसा component है जो electrical ऊर्जा को इकट्ठा (store) और छोड़ने (release ) का काम करती है एवं जिसे चालू (operate) करने के लिए अतिरिक्त बाहरी power source की आवश्यकता नहीं होती है।
What is Capacitor in hindi एवं capacitor का Mathematically द्वारा परिभाषित
Capacitor , परावैद्युत पदार्थ (dielectric material) द्वारा अलग किए गए दो सुचालक (conductor) प्लेट से मिलकर बनी हुई एक passive electronic components है जो electrical ऊर्जा को इकट्ठा (store) और छोड़ने (release ) का काम करती है। इसलिए इसका उपयोग DC फिल्टर , power supply आदि मे किया जाता है क्यूंकि इस प्रकार की सर्किट के output voltage मे हमेशा उतार चढ़ाव (fluctuations) बनी रहती है। voltage की उतार चढ़ाव (fluctuations) को रोकने के लिए या voltage को हमेशा के लिए एक निश्चित मान (fixed value) मे रखने के लिए capacitor का उपयोग किया जाता है।
किसी भी प्रकार की सर्किट मे output voltage की मान जब जब (value) कम (down) होती है तब output voltage की मान (value) को स्थिर या एकसामन रखने के लिए Capacitor खुद अपनी संग्रहित ऊर्जा (stored energy) को सर्किट मे छोड़ती (release) है जिससे सर्किट मे output voltage की मान (value) कम (down) होने से रुक जाती है या output voltage की मान एक समान हो जाती है। अत: output voltage की उतार चढ़ाव (fluctuations) ना होके voltage स्थिर होने लकती है और इस तरह स्थिर या Stable voltage को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण द्वारा उपयोग किया जाता है।
चूंकि capacitor इलेक्ट्रिकल ऊर्जा को इकट्ठा और छोड़ती है अर्थात capacitor मे charging और discharging की प्रक्रिया लगातार होती रहती है।
Capacitor मे इकट्ठा (store) की जाने वाली ऊर्जा की मात्रा (amount) , capacitor की capacitance पर निर्भर करती है। Capacitance को farads (F) में मापा जाता है। Capacitor की capacitance को ‘C’ द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
आइए अब हम capacitor को mathematically समझने की कोशिश करेंगे।
जैसा की हमसब उपर में पढ़ चुके है capacitor ऊर्जा को इकट्ठा करने का काम करती है। यह ऊर्जा चार्ज (charge) के रूप मे होती है।
Capacitor component मे capacitance की गुण पाई जाती है जिसके कारण ऊर्जा या चार्ज इकट्ठा हो पाती है।
अत: Capacitor का capacitance वह कहलाती है जो प्रति यूनिट वोल्टेज में इकट्ठा (store) किए जा सकने वाले चार्ज (charge Q) होती है।
इसलिए , C = Q/V
यहां C = Capacitance , Q = charge & V = voltage जो volts मे है।
Capacitance को व्यक्त करने का और एक सूत्र है जो नीचे दी गई है।
C = εA/d
यहां C = Capacitance , A= प्लेट की area , ε=पदार्थ के dielectric constant & d = प्लेटो के बीच की दूरी
Capacitance क्या है और इसे कैसे बढाये ?
Capacitor component मे जो ऊर्जा इकट्ठा करने की क्षमता पाई जाती है उसे ही capacitance कहा जाता है।
C = εA/d सूत्र द्वारा हम पाते हैं —
प्लेट की area के साथ Capacitor का Capacitance , directly proportional होती है । अर्थात प्लेट की area बढ़ाने पर capacitance भी बढ़ेगी।
पदार्थ के dielectric constant के साथ Capacitor का Capacitance , directly proportional होती है । अर्थात पदार्थ के dielectric constant बढ़ाने पर capacitance भी बढ़ेगी।
प्लेटो की दूरी के साथ Capacitor का Capacitance , inversely proportional होती है । अर्थात प्लेटो के बीच की दूरी बढ़ाने पर capacitance घटेगी और प्लेटो के बीच की दूरी घटाने पर capacitance बढ़ेगी।
Capacitor का उपयोग क्यों किया जाता है? एवं कैपेसिटर का काम क्या है?
Capacitor को उपयोग करने के कई कारण हैं। नीचे कुछ कारणो की चर्चा की गई है।
(1) Output voltage को स्थिर (stable) करने के लिए —
किसी भी सर्किट का output voltage अस्थिर ( unstable) बनी रहती है या output voltage मे उतार चढ़ाव (fluctuations) होती रहती है या output voltage की मात्रा कभी अधिक तो कभी कम होती रहती है। जब output voltage की मात्रा अधिक होती है तब capacitor अपने आप को चार्ज कर लेता है और जब output voltage की मात्रा में कमी होने लकती है तब charging capacitor अपनी चार्ज को छोड़ ( release) देती है जिससे सर्किट मे output voltage की मात्रा मे कमी होती नही है और इस तरह output voltage मे उतार चढ़ाव (fluctuations) रुक जाती है जिसे सर्किट के Output voltage मे स्थिरता आती है।
(2) Filter out noise/unwanted signal —
कैपेसिटर high frequency सिग्नल को ही पास होने देता है जबकि low frequency सिग्नल को रोकता (block) है। ऐसा इसलिए high frequency सिग्नल से capacitor बहुत ही जल्दी charge और discharge होती है जिससे सिग्नल आगे की ओर जा पाती है जबकि low frequency सिग्नल से capacitor बहुत ही धीरे धीरे ( slowly ) चार्ज होने के कारण सिग्नल आगे की ओर नही जा पाती है।
उदाहरण के लिए मना हमारे पास कोई 1khz frequency की उपकरण है और जबकि हमारी सिग्नल मे 1khz और 1khz से नीचे वाली अनावश्यक ( unnecessary ) सिग्नल भी आ रही है तो ऐसे में capacitor केवल 1khz high frequency वाली सिग्नल को ही आगे पास होने देगी बाकी 1khz से नीचे यानी low frequency वाली सिग्नल को आगे जाने नही देगी।
(3) Power supply को transients से बचाने के लिए —
सप्लाई की जाने वाली power मे कभी कभी बहुत ही कम समय के लिए voltage मे spikes आती है या voltage मे अचानक वृद्धि ( increase) होती है जिसे capacitor द्वारा charging के रूप में अवशोषित ( absorbed) कर लिया जाता है। जिससे Power supply नुकसान होने से बच जाती है।
Capacitor का उपयोग कहां कहां किया जाता है ?
Capacitor का उपयोग सभी प्रकार के सर्किट में किया जाता है।
(1) Capacitor का उपयोग Filters में किया जाता है।
(2) Capacitor का उपयोग rectifier में किया जाता है।
(3) Capacitor का उपयोग power supply में किया जाता है।
(4) Capacitor का उपयोग Amplifiers में किया जाता है।
(5) Capacitor का उपयोग single phase induction मोटर में किया जाता है।
(6) Capacitor का उपयोग पंखा (fan) में किया जाता है।
(7) Power factor को सुधारने के लिए capacitor का उपयोग किया जाता है।
कैपेसिटर का कार्य सिद्धांत (working principle)
Capacitor का कार्य सिद्धांत (working principle) एक समान आवेशो के बीच प्रतिकर्षण और विपरीत आवेशो के बीच आकर्षण के नियम पर आधारित है।
Dielectric पदार्थ से अलग किए गए (dielectric material) दो चालक प्लेट को वोल्टेज स्रोत से जोड़ने पर एक प्लेट मे इलेक्ट्रोन इकट्ठा होते जाती है क्यूंकि वोल्टेज स्रोत के नेगेटिव टर्मिनल में इलेक्ट्रोन की अत्याधिकता के कारण low potential क्षेत्र बनती है और प्लेट में नेगेटिव टर्मिनल की तुलना मे इलेक्ट्रोन बहुत कम होती है इसलिए प्लेट high potential क्षेत्र बनाती है जिसके परिणामस्वरूप इलेक्ट्रोन नेगेटिव टर्मिनल की low potential से प्लेट की high potential की ओर चलने लकती है जिससे प्लेट में इलेक्ट्रोन इकट्ठा होती जाती है जो प्लेट को निगेटिव चार्ज बनाती है।
दूसरी प्लेट मे उपस्थित इलेक्ट्रोन वोल्टेज स्रोत के पॉजिटिव टर्मिनल द्वारा आकर्षित कर ली जाती है और चूंकि दोनो प्लेट पास पास होने के कारण पहला प्लेट मे इलेक्ट्रोन की संख्या बढ़ने से दूसरी प्लेट मे उपस्थित इलेक्ट्रोन प्रतिकर्षित अनुभव करती है इसलिए जितने संख्या मे इलेक्ट्रोन पहली प्लेट पर इकट्ठा होती है उतनी ही संख्या मे दूसरे प्लेट की इलेक्ट्रोन प्लेट को छोड़कर वोल्टेज स्रोत के पॉजिटिव टर्मिनल की ओर चली जाती है जिससे दूसरी प्लेट मे इलेक्ट्रोन की कमी से पॉजिटिव चार्ज बनती है।
अत: एक प्लेट मे इलेक्ट्रोन इकट्ठा होने से नेगेटिव चार्ज बनाती है और दूसरी प्लेट पॉजिटिव चार्ज बनती है। इस तरह दोनो प्लेट में चार्ज इकट्ठा होती है जिसे हम capacitor बोलते हैं। यही चार्ज ऊर्जा भी कहलाती है क्यूंकि इनमे कार्य करने की क्षमता होती है।
पॉजिटिव चार्ज high potential से low potential की ओर जाती है।
नेगेटिव चार्ज या इलेक्ट्रोन low potential से high potential की ओर जाती है।
अत्यधिक मात्रा मे पॉजिटिव चार्ज high potential उत्पन्न करती है एवं कम मात्रा मे पॉजिटिव चार्ज low potential उत्पन्न करती है जबकि अत्यधिक मात्रा मे नेगेटिव चार्ज low potential उत्पन्न करती है एवं कम मात्रा मे नेगेटिव चार्ज high potential उत्पन्न करती है।
Capacitor कैसे काम करती हैं एवं कैपेसिटर का कार्य
जब capacitor मे voltage को सप्लाई किया जाता है तब पहली प्लेट मे उपस्थित इलेक्ट्रोन , वोल्टेज स्रोत (source) के पॉजिटिव टर्मिनल द्वारा आकर्षित होती है जिससे पहली प्लेट मे उपस्थित इलेक्ट्रोन पॉजिटिव टर्मिनल की ओर चली आती है जिसके परिणामस्वरूप पहली प्लेट मे इलेक्ट्रोन की कमी से पॉजिटिव चार्ज बनती है।
इसके विपरित दुसरी प्लेट मे उपस्थित इलेक्ट्रोन , वोल्टेज स्रोत (source) के नेगेटिव टर्मिनल के इलेक्ट्रोन द्वारा प्रतिकर्षित होती है। चूंकि वोल्टेज स्रोत (source) के नेगेटिव टर्मिनल मे अत्यधिक नेगेटिव चार्ज होने के कारण यहां low potential उत्पन्न होती है तथा दूसरी प्लेट में इलेक्ट्रोन कम है यानी नेगेटिव चार्ज कम होने के कारण यहां high potential उत्पन्न होती है जिसके परिणामस्वरूप नेगेटिव टर्मिनल की इलेक्ट्रोन दूसरी प्लेट की ओर चली जायेगी क्यूंकि निगेटिव चार्ज low potential से high potential की ओर जायेगी एवं दूसरी प्लेट में इकट्ठा होते जायेगी जिससे दूसरी प्लेट मे इलेक्ट्रोन इकट्ठा होने से निगेटिव चार्ज बनेगी ।
दूसरी प्लेट में जितना इलेक्ट्रोन इकट्ठा होते जायेगी उतनी ही मात्रा में पहली प्लेट से इलेक्ट्रोन निकल करके वोल्टेज स्रोत के पॉजिटिव टर्मिनल की ओर चली जायेगी क्यूंकि दूसरी प्लेट की इकट्ठा होती इलेक्ट्रोन पहली प्लेट की इलेक्ट्रोन को प्रतिकर्षित करेगी एवं पॉजिटिव टर्मिनल द्वारा आकर्षित भी होगी।
जैसे ही प्लेट में पॉजिटिव चार्ज और नेगेटिव चार्ज बनने लगेगी वैसे ही प्लेटो के बीच इलेक्ट्रिक फील्ड भी बनते जायेगी । Capacitor का जितना capacitance होगी उतनी ही चार्ज इकट्ठा हो पाएगी।
इस पूरी प्रक्रिया को capacitor charging प्रक्रिया कहते हैं और इस तरह चार्ज की गई ऊर्जा का उपयोग विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक सर्किटो में किया जाता है।
कैपेसिटर का मुख्य कार्य
Capacitor का मुख्य कार्य जब किसी सर्किट मे जब जब वोल्टेज मे कमी (down) आती है तब charging capacitor अपनी ऊर्जा मुक्त (release ) करके वोल्टेज मे आई कमी (down) को दूर करती है। यह किसी भी सर्किट में एक स्थिर (stable ) वोल्टेज बनाए रखने में मदद करता है।
किसी भी सर्किट मे वोल्टेज कुछ सेकंड मे ही हमेशा बदलती रहती है जिससे वोल्टेज अस्थिर ( unstable) बनी रहती है इसलिए capacitor इस अस्थिर ( unstable) वोल्टेज को एक स्थिर ( stable) बनाने का काम करती है। Capacitor किसी भी सर्किट के वोल्टेज में आई अचानक वृद्धि और अचानक आई कमी को नियंत्रित ( control) कर सकती है जिससे सर्किट की वोल्टेज में स्थिर बनी रहती है।क्यूंकि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को एक स्थिर ( stable) वोल्टेज की जरूरत होती है।
Capacitor का उपयोग वैसे उपकरण मे भी किया जाता है जहां उपकरण को केवल starting मे ही चालू करने के लिए अधिक पावर की जरूरत होती है जैसे single phase मोटर मे भी कैपेसिटर का उपयोग किया जाता है क्यूंकि single phase मोटर को केवल starting मे ही अत्यधिक पावर की जरूरत होती है तो starting मे कुछ क्षण के लिए अतिरिक्त पावर की सप्लाई charging capacitor द्वारा किया जाता है।
कैपेसिटर की संरचना/ बनावट कैसे होती है
कैपेसिटर की संरचना या बनावट बहुत ही सरल होती है।
कैपेसिटर दो धातु ( metal) की प्लेट से बनी होती है जो बहुत ही पास पास होती है लेकिन एक दूसरे से जुड़ी नही होती है। दोनो प्लेटो के बीच में जो खाली स्थान होती है उसे कुचालक (insulating) पदार्थ से भरी जाती है जिसे “dielectric” कहा जाता है। Dielectric इलेक्ट्रिक करेंट को प्रवाहित होने से रोकती है पर यह दो प्लेटो के बीच बनने वाले इलेक्ट्रिक फील्ड एवं आवेशो (charge) के बीच प्रतिकर्षण और आकर्षण क्षमता को नही रोकती है। इस गुण के कारण ही कैपेसिटर ऊर्जा या चार्ज को इकट्ठा कर पाती है।
Capacitor कितने प्रकार के होते हैं?
वैसे कैपेसिटर मुख्यत: दो ही प्रकार के होते हैं लेकिन ओर एक नई प्रकार की कैपेसिटर की विकसित की जा रही है।
(1) Fixed capacitors —
Fixed capacitor एक ऐसी प्रकार की कैपेसिटर होती है जिसकी capacitance निश्चित ( fixed) होती है। Fixed capacitor की capacitance को ना तो बढ़ाया जा सकता है और ना ही घटाया जा सकता है वह हमेशा निश्चित ( fixed) होती है।
Fixed capacitor की कुछ उदाहरण नीचे दी गई है।
(a) Paper capacitors
(b) Plastic capacitor
(c) Ceramic capacitor
(d) Mica capacitor
(e) Electrolytic capacitor
(2) Variable capacitors —
Variable capacitor एक ऐसी प्रकार की कैपेसिटर होती है जिसकी capacitance निश्चित ( fixed) नही होती है। Variable capacitor की capacitance को बढ़ाया भी जा सकता है और घटाया भी जा सकता है इसलिए इस प्रकार के capacitor को Variable capacitors कहा जाता है।
Variable capacitor की कुछ उदाहरण नीचे दी गई है।
(1) Tuning Capacitors
(2) Mechanical Capacitors
(3) Air Capacitors
(3) Supercapacitors —
Supercapacitors की capacitance बहुत ही अधिक है। इसलिए इसे Supercapacitors कहा जाता है।
कैपेसिटर का कनेक्शन कैसे करे
कैपेसिटर का कनेक्शन दो प्रकार से किया जाता है —
(1) Series Connection
(2) Paraller Connection
कैपेसिटर का Series Connection
Series Connection मे कैपेसिटर का end-to-end कनेक्शन किया जाता है । अर्थात एक कैपेसिटर का अंतिम छोर को दूसरे कैपेसिटर के अंतिम छोर के साथ जोड़ा जाता है जैसे चैन एक दूसरे के साथ जुड़ी रहती है।
अगर दो या दो से अधिक कैपेसिटर को इस तरह से Series Connection किया जाता है तब सभी कैपेसिटर की कुल capacitance प्रत्येक capacitor के capacitance का व्युत्क्रमो के योग के बराबर होती है ।
जब capacitor को Series मे कनेक्शन किया जाता है तब प्रत्येक capacitor मे वोल्टेज की मान अलग अलग होती है जैसे पहला capacitor C1 के लिए वोल्टेज V1 होगी, दूसरा capacitor C2 के लिए वोल्टेज V2 होगी , तीसरी capacitor C3 के लिए वोल्टेज V3 होगी और इसी तरह आगे होती है।
चूंकि C = Q/V या V = Q/C
V = V1 + V2 + V3
Q/C = Q/C1 + Q/C2 + Q/C3
Q(1/C) = Q(1/C1 + 1/C2 + 1/C3)
1/C = 1/C1 + 1/C2 + 1/C3
कैपेसिटर का Parallel Connection
कैपेसिटर के Parallel Connection मे प्रत्येक capacitor का नेगेटिव टर्मिनल एक साथ जुड़े होते हैं और उनके पॉजिटिव टर्मिनल भी एक साथ जुड़े होते हैं।
इस तरह प्रत्येक कैपेसिटर Parallel मे Connection होने पर सभी capacitor की कुल capacitance उनके प्रत्येक कैपेसिटर के capacitance के योग के बराबर होती है।
Total Capacitance (C) = C1+C2+C3