Transistor definition in Hindi ,What is transistor in hindi या transistor kya hai ? fet,bjt,npn pnp transister in hindi ट्रांजिस्टर का विस्तारपूर्वक वर्णन इस आर्टिकल में किया गया है।
Table of Contents
Transistor meaning क्या है ?
दोस्तो transistor दो word से मिलकर बनी हुई है transfer & resistance। इसलिए ट्रांजिस्टर (Transistor) का अर्थ transfer resistance होता है। इसका मतलब प्रतिरोध (resistance) मे बदलाव करना होता है।
Transistor definition (परिभाषा) क्या है ?
Transistor एक छोटी अर्धचालक है जो current और voltage की प्रवाह को नियंत्रित करती है।
अर्थात Transistor एक ऐसी semiconductor डिवाइस है जिससे current और voltage की मात्रा को कम या ज्यादा किया जा सकता है।
Transistor kya hai
Transistor दो junction और 3 टर्मिनल semiconductor से बनी एक ऐसी electronic device है जो इलेक्ट्रिक करेंट और वोल्टेज को नियंत्रित करने के साथ साथ इलेक्ट्रिकल सिग्नल को बढ़ाने का काम भी करती है।
आसान शब्दो में कहे तो transistor एक ऐसा semiconductor डिवाइस है जो करेंट को conduct भी कर सकता है और करेंट को रोक भी सकता है। इन दो प्रकार की गुण की वजह से transistor को सिग्नल amplify और स्विचिंग इन दो मुख्य प्रकार के कामों में उपयोग किया जाता है । ध्यान से देखे तो स्विचिंग मे दो प्रक्रिया होती है On और Off । On उस स्थिति को कहां जाता है जब ट्रांजिस्टर करेंट को conduct करती है जबकि off उस स्थिति को कहा जाता है जब ट्रांजिस्टर करेंट को conduct नही करती है यानी ट्रांजिस्टर insulator की तरह कार्य करती है। Transistor का conductor और insulator की तरह कार्य करने की गुण semiconductor पदार्थ के कारण संभव हो पाई है। इसलिए ट्रांजिस्टर को semiconductor पदार्थ से बनाया जाता है।
ट्रांजिस्टर में तीन टर्मिनल होते हैं जिसे base टर्मिनल, emitter टर्मिनल और collector टर्मिनल कहा जाता है।
ट्रांजिस्टर के base टर्मिनल ट्रांजिस्टर को आपरेट या ट्रिगर करने का काम करती है यानी base टर्मिनल ट्रांजिस्टर को चालू करने का काम करता है।
Base टर्मिनल में बहुत ही कम सप्लाई देना होता है जिसके परिणामस्वरूप Collector और emitter region मे high current flow होना शुरू होती है।इसलिए जब हमे सिग्नल को amplify करना होता है तब हम low सिग्नल को base टर्मिनल में इनपुट देते हैं जिससे Collector और emitter region से आउटपुट मे high सिग्नल मिलने लकती है इसके अलावा स्विचिंग के रूप में कार्य करने के लिए base टर्मिनल की सप्लाई को कम और ज्यादा करना होता है।
Transistor के अविष्कार होने से पहले सिग्नल को amplify करने के लिए vacuum tubes का उपयोग किया जाता था लेकिन vacuum tubes के कई disadvantage होने के चलते vacuum tubes की जगह transistor ने जगह ली। vacuum tubes के कई disadvantage थे जैसे अधिक बिजली की खपत,high cost , यह बड़ी space घेरती थी और इसकी efficiency बहुत ही कम होती थी। जबकि transistor इसका उल्टा था । Transistor बहुत कम बिजली की खपत करती है, यह low cost है, high efficiency है और यह बहुत बहुत ही कम Nanometer scale जगह घेरती है यानी इसकी size छोटी है इसलिए इसका उपयोग नेनोचिप मे किया जाता है।
ट्रांजिस्टर की Base टर्मिनल , emitter और collector की करेंट को नियंत्रित करती है। Base टर्मिनल को बहुत ही हल्की doped द्वारा thin layers का बनाया जाता है जबकि emitter और collector को heavily doped द्वारा इसलिए बनाया जाता है ताकि चार्ज कैरियर अधिक बन सके।चार्ज कैरियर अधिक होने से करेंट भी अधिक बनेगी क्यूंकि करेंट चार्ज कैरियर की प्रवाह (flow) से बनती है। emitter और collector के चार्ज कैरियर की प्रकृति , base के चार्ज कैरियर से अलग होती है । यह emitter-base region को low resistance प्रदान करती है यानी यह एक forward bias की तरह कार्य करती है इसलिए यह region high current की मार्ग होती है। जबकि collector-base region को high resistance प्रदान करती है जो reverse bias की तरह कार्य करती है इसलिए इस region मे low current की मार्ग होती है।
Emitter और collector का काम ट्रांजिस्टर के प्रकार पर निर्भर करती है या Emitter और collector region को आउटपुट के रूप में उपयोग किया जाता है।
Transistor एक ऐसा डिवाइस है जो हर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मे बहुतायत मात्रा में होती है। Transistor के बिना इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की कल्पना भी हम नही कर सकते हैं। सन 1947 मे John Bardeen,William Shockley और Walter Houser Brattain द्वारा transistor का अविष्कार किया गया था जो सबसे बड़ी खोजो में से एक है। Transistor के अविष्कार के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में क्रांति (revolution) युग की शुरुवात हुई।
माइक्रोप्रोसेसर , माइक्रोकंट्रोलर, इंटीग्रेटिड सर्किट (IC) जैसे अदभुत चिप की निर्माण में ट्रांजिस्टर का उपयोग अत्यधिक मात्रा में किया जाता है।
ट्रांजिस्टर का उपयोग logic gate बनाने में किया जाता है । अर्थात ट्रांजिस्टर digitally तार्किक कार्य कर सकने वाली आधारभूत उपकरण है और ट्रांजिस्टर में यह तार्किक कार्य के पीछे ट्रांजिस्टर की करेंट को नियंत्रित कर सकने एवं atomatic स्विचिंग की तरह कार्य कर सकने की वजह से संभव हो पाई है। इसलिए ट्रांजिस्टर Digitally circuit के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Digital electronics में सबसे अधिक उपयोग में लिया जाने वाला डिवाइस transistor ही होती है। Transistor के बिना डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स की हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए transistor की fundamental concept को समझना अति महत्वपूर्ण है।
अधिकतर ट्रांजिस्टर को सिलिकॉन सेमीकंडक्टर पदार्थ द्वारा बनाया जाता है । इसके अलावा transistor को जर्मेनियम और गैलियम जैसे सेमीकंडक्टर पदार्थों से भी बनाया जाता है। सिलिकॉन पदार्थ रेत में पाई जाती है और जिस अवस्था में पाई जाती है वो करेंट की चलकता नही होती है। इसलिए सिलिकॉन पदार्थ को doping प्रक्रिया द्वारा अर्धचालक बनाया जाता है। Doping प्रक्रिया द्वारा P type अर्धचालक और N type अर्धचालक बनाया जाता है।
P type अर्धचालक (semiconductor) और N type अर्धचालक (semiconductor) को जोड़कर ट्रांजिस्टर का निर्माण किया जाता है।
Transistor का काम क्या है ?
Transistor इलेक्ट्रोन की गति या करेंट की amount को नियंत्रित कर सकता है । इलेक्ट्रिक पावर को amplify कर सकता हैं एवं पावर switching का काम भी हम इस device की मदद से कर सकते है।
transistor important qun hai
दोस्तो ट्रांजिस्टर का सबसे अधिक उपयोग आजकल के mobile और computer मे किया जाता है। Mobile और computer के छोटी सी प्रोसेसर (CPU) मे लाखो , करोड़ो transistor लगे होते है जिससे की इलेक्ट्रॉन की movement एवं पावर को भली भांति नियंत्रित किया जा सके जिसके परिणामस्वरूप हमलोग अपने mobile या computer को इतनी तेजी से चला पाते है।
इसलिए transistor का आज की दुनिया में बहुत बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसे बारीकी से समझना काफी जरूरी है ताकि डिजिटल सर्किट की बनावट को हम समझ सके।
Transistor ka tpye kya hai
ट्रांजिस्टर की बहुत सी प्रकार होती लेकिन इस आर्टिकल में हम केवल ट्रांजिस्टर की मुख्य प्रकार की वर्णन को देखेंगे।
- BJT ( Bipolar junction Transistor )
- PNP
- NPN
- FET ( Field Effect Transistor)
- JFET
- MOSFET
Bjt transistor kya hai
BJT = Bipolar junction Transistor
Transistor को Bipolar junction और unipolar junction transistor के आधार पर बांटा गया है।
Bipolar का मतलब दो polar होता है और unipolar का मतलब एक ही polar होता है।
अर्थात Bipolar junction transistor ( bjt) मे दो polar यानी electron charge कैरियर और hole charge कैरियर दो प्रकार की charge कैरियर से bjt transistor की opration होती है। इसलिए इसे Bipolar junction transistor कहा जाता है।
Bipolar junction transistor मे operation होने के लिए दो charge करियर की आवश्कता होती है उनमे से एक इलेक्ट्रोन चार्ज कैरियर और दूसरी hole चार्ज कैरियर होती है। bjt में तीन टर्मिनल semiconductor और दो junction होती है।
Bipolar junction transistor दो प्रकार की होती है। PNP transister और NPN transistor ।
pnp और npn ट्रांजिस्टर में कितने जंक्शन होते हैं?
PNP और npn ट्रांजिस्टर में दो जंक्शन होती है – emitter base junction और collector base junction।
pnp transistor kya hai ?
pnp ट्रांजिस्टर मे दो p type semiconductor और एक n type semiconductor होते हैं एवं इसे p type semiconductor के बाद n type semiconductor एवं फिर से p type semiconductor को जोड़कर बनाया गया है इसलिए इसे पीएनपी ट्रांजिस्टर (PNP) कहा जाता है। N type semiconductor मे अधिकांश negative चार्ज कैरियर होती है जबकि p type semiconductor मे holes चार्ज कैरियर होती है।
PNP transister मे तीन टर्मिनल होते है emitter (E) , base (B) & Collector ।
Emitter का काम base के माध्यम से collector को चार्ज कैरियर पहुंचाना । Emitter को पावर स्रोत से डायरेक्ट जोड़ा जाता है। इसलिए emitter से आने वाली करेंट , collector टर्मिनल और base टर्मिनल मे विभाजित हो जाती है। इसलिए emitter टर्मिनल का करेंट = base टर्मिनल का करेंट + collector टर्मिनल का करेंट होता है यानी दोनो करेंट के योग के बराबर होती है।
Collector का काम emmiter से आने वाले चार्ज कैरियर को इकट्ठा करना या जमा (collect) करना होता है और फिर आउटपुट के रूप में इस चार्ज कैरियर का उपयोग किया जाता है।
जबकि Base का काम emitter से collector की ओर जाने वाले चार्ज कैरियर को चालू करना(trigger) या नियंत्रित (control) करने काम होता है।
ध्यान रखें – conventional current direction की दिशा ” +” positive से “–” Negative की ओर होती है जबकि वास्तव में देखा जाए तो इलेक्ट्रॉन का प्रवाह negative टर्मिनल से positive टर्मिनल की ओर होती है। सर्किट डिजाइन या सर्किट वर्णन करने के लिए conventional current direction का ही उपयोग किया जाता है।
समझने के लिए PNP transister के equivalent circuit को देखे तो यह PN junction diode को back to back जोड़कर बनाया गया है। जो जैसा की नीचे के Diagram मे दिखाया गया है।
PNP transistor की संरचना (construction)
PNP transistor तीन samiconductor और दो junction से मिलकर बनी हुई है। तीन semiconductor मे से दो p type semiconductor होती है और एक n type semiconductor होती है।
यदि इन तीन semiconductor को PNP के अनुरूप जोड़ेंगे तो दो junction बनेगी। ये दो जंक्शन emitter base (EB) और base collector (BC) कहलाती है।
PNP transistor के पहला p type semiconductor मे एक टर्मिनल होती है जिसे Emitter कहेंगे उसके बाद N type semiconductor मे एक base नाम से टर्मिनल होती है एवं दूसरी ओर अंतिम p type semiconductor मे और एक टर्मिनल होगी जिसे collector टर्मिनल कहा जाता है इसी तरह pnp ट्रांजिस्टर मे तीन टर्मिनल होती है।
P type semiconductor मे अत्यधिक holes चार्ज कैरियर होती है जबकि n type semiconductor मे इलेक्ट्रान चार्ज कैरियर होती है।
N type semiconductor की तुलना में दोनों p type semiconductor heavily doped होती है। जिससे holes चार्ज कैरियर अत्यधिक मात्रा में होती होती हैं एवं इनके layer भी कभी चौड़ी होती है।
N type semiconductor मे इलेक्ट्रान चार्ज कैरियर होते हैं और इसे हल्का doped किया जाता है जिससे free electron base क्षेत्र मे काफी कम होती है। N type semiconductor layer की चौड़ाई कही कम होती है।
इनकी बनावट संरचना के आधार पर PNP transistor मे holse चार्ज कैरियर अत्यधिक होती है।
PNP transistor कैसे काम करती है ?
अब हम सबसे पहले voltage source (V1) का positive terminal को pnp ट्रांजिस्टर के Emitter से जोड़ेंगे और V1 सप्लाई के नेगेटिव टर्मिनल को ट्रांजिस्टर के base से जोड़ेंगे।
इसलिए अब चूंकि सप्लाई V1 को ट्रांजिस्टर के emitter और base से connected किए है इसलिए emmiter base junction एक forward bias की तरह कार्य करेगी जो एक pn junction diode की तरह की कार्य करेगी ।
अब हम दूसरी voltage source (V2) का positive terminal को pnp ट्रांजिस्टर के base से जोड़ेंगे और V2 सप्लाई के नेगेटिव टर्मिनल को ट्रांजिस्टर के collector से जोड़ेंगे।
इसलिए अब चूंकि V2 सप्लाई को ट्रांजिस्टर के base और collector से connected किए है इसलिए base collector junction एक reverse bias की तरह कार्य करेगी जो एक pn junction diode की तरह की कार्य करेगी ।
इस तरह V 1 सप्लाई से emitter base junction की forward bias के कारण जंक्शन की चौड़ाई धीरे धीरे कम होती जाती है जिसके परिणामस्वरूप base के free इलेक्ट्रॉन emitter के holes की ओर move होती है और holes के साथ मिल जाती है।
Base हल्की doped होने के कारण इनमे free electron की संख्या बहुत ही कम होते है और यह सभी free electron , emitter की ओर move करके holes के साथ combine हो जाती है लेकिन emitter heavily doped के कारण holes की मात्रा बहुत ही अधिक है जिससे की emitter की कुछ holes तो Base की free electron के साथ emitter region मे ही combine हो जाती है लेकिन emitter की बाकी सभी holes चार्ज कैरियर , base region की ओर move होती है।
जबकि Free electron, base region से emitter region मे चल जाती है अब base region मे जो electron बचती है वो free नही होती है । ये electron base मे इसलिए बचती है क्यूंकि यह move नही कर पाती है। शेष बची base की इलेक्ट्रोनो की संख्या भी कम होती है।
इसलिए holes चार्ज कैरियर base region मे शेष बची इन इलेक्ट्रॉन के साथ combine करती है जिनकी संख्या कम होती है इसलिए बाकी holes चार्ज कैरियर collector region की ओर move होती है लेकिन कैसे ? Collector region मे तो holes चार्ज कैरियर है।
हां लेकिन collector region को V2 सप्लाई के negative से जोड़ा गया है इसलिए collector region की holes चार्ज कैरियर V2 सप्लाई की नेगेटिव टर्मिनल की negative चार्ज के कारण आकर्षित होती है इसलिए base region की बाकी holes भी collector region की ओर move करने लकती है।
अत: base region के कुछ free electron emitter region मे जाती है।
emitter base junction के forward bias के कारण कुछ इलेक्ट्रॉन V1 source के negative terminal एवं base terminal से होते हुए emitter region की ओर जाती है।
V2 source के negative terminal से कुछ इलेक्ट्रॉन collector terminal से होते हुए emitter region मे जाति है ।
परिणामस्वरूप emitter region मे base terminal एवं collector terminal दोनो टर्मिनल से इलेक्ट्रॉन आती है इसलिए इन सब इलेक्ट्रॉन की गति दिशा के विपरीत दिशा में जो current flow होगी उसे emitter current ( IE) कहा जाता है।
और इसलिए emitter current की मात्रा(amount) collector current से अधिक होती है। क्यूंकि emitter current की कुछ भाग collector region जाती हैं एवं कुछ भाग base region मे चली जाती है।
Emitter base junction के forward bias के कारण जो इलेक्ट्रोन V2 source के negative terminal एवं base terminal से होते हुए emitter region मे जाति एवं जिसके परिणामस्वरूप base current (IB) बनती है और यह करेंट collector region मे नही जाती है बल्कि base region के टर्मिनल से निकल जाती है।याद रखे हमेशा current की दिशा इलेक्ट्रॉन की गति के विपरीत दिशा में होती है।
Base region मे बाकी बचे holes चार्ज कैरियर collector region मे move होती है क्यूंकि collector region के holes चार्ज कैरियर V2 source के negative terminal से आकर्षित होती हैं एवं इस तरह V2 के नेगेटिव टर्मिनल से free electron collector region की ओर flow होती है जिससे collector current (IC) बनती हैं।
आइए अब PNP transistor की total current को निकलते हैं।
PNP transister मे जितनी भी emitter current की मात्रा होती है वो emitter region से कुछ करेंट base region के टर्मिनल से बाहर निकलती है और कुछ करेंट collector region मे जाती है।
इसलिए,
IE = IB + IC समीकरण –1
चूंकि emitter region से आने वाली कुछ emitter current ( IE) base region के टर्मिनल से बाहर चली जाती है।
इसलिए
collector current (IC) की मात्रा
IC = IE - IB समीकरण –2
NPN transistor kya hai ?
NPN transistor मे दो N type semiconductor होती है जिसमे अधिकांश (majority) negative चार्ज कैरियर होती है और एक P type semiconductor होती है जिसमे holes चार्ज कैरियर होती है। NPN transistor मे n type,p type और फिर n type semiconductor को जोड़कर बनाया गया है इसलिए इसे NPN transistor कहा जाता है।
NPN transistor मे PNP transistor के विपरीत दिशा में करेंट को प्रवाह (flow) कराती है। इसलिए PNP transistor का उल्टा NPN transistor होती है।
NPN मे भी तीन टर्मिनल होती है जो Base टर्मिनल, emitter टर्मिनल और collector टर्मिनल होती है।
NPN ट्रांजिस्टर के Emitter टर्मिनल मे base टर्मिनल और collector टर्मिनल से आने वाली करेंट दोनो को इकट्ठा (Collect) करती है। इसलिए emitter टर्मिनल का करेंट = Base टर्मिनल का करेंट + collector टर्मिनल का करेंट, दोनो टर्मिनल करेंट के योग के बराबर होती है।
NPN ट्रांजिस्टर में भी collector को आउटपुट के रूप में उपयोग किया जाता है।
NPN transistor की संरचना (construction)
दोस्तो npn ट्रांजिस्टर और pnp ट्रांजिस्टर की working principle एक समना ही है। npn ट्रांजिस्टर की बनावट PNP ट्रांजिस्टर की विपरीत है इसलिए उनकी current की direction मे भी विपरीत है।
सबसे पहले हम npn ट्रांजिस्टर की emitter टर्मिनल को voltage source (V1) के नेगेटिव टर्मिनल के साथ जोड़ेंगे उसके बाद V1 के पॉजिटिव टर्मिनल को ट्रांजिस्टर के base टर्मिनल के साथ जोड़ेंगे।
परिणामस्वरूप emitter base junction एक forward bias की तरह काम करेगी।
इसके विपरित npn ट्रांजिस्टर की collector टर्मिनल को voltage source (V2) के positive टर्मिनल के साथ जोड़ेंगे उसके बाद V2 के nagative टर्मिनल को ट्रांजिस्टर के base टर्मिनल के साथ जोड़ेंगे।
परिणामस्वरूप Base collector junction एक reverse bias की तरह काम करेगी।
अब चुंकि V1 supply के कारण emitter base junction एक forward bias की तरह काम करेगी जिसके परिणामस्वरूप emitter base junction की चौड़ाई धीरे धीरे कम होते जायेगी और अंत में emitter के n type semiconductor के free electron बैरियर को क्रॉस करके base region के P type semiconductor के holes के साथ combine हो जाते है ।
चूंकि npn ट्रांजिस्टर मे p type semiconductor हल्की doped होती है जिसके कारण holes की संख्या काफी कम होती है। इसलिए emitter region से आने वाली इलेक्ट्रॉन मे से कुछ इलेक्ट्रॉन ही base region के holes के साथ combine होती है और बाकी collector region की ओर move होती है क्यूंकि collector region की इलेक्ट्रॉन V2 source की positive टर्मिनल के positive charge द्वारा आकर्षित होती है।
इसलिए जब emitter region से free electron base region की ओर जाती है तब emitter region मे आने वाले total current को emitter current (IE) कहा जाता है और इस करेंट की दिशा electron गति की दिशा से विपरीत होती है। इसलिए इलेक्ट्रॉन emitter region से base की ओर जाती है जबकि इससे बनने वाली करेंट base region से emitter region की ओर जाती है।
Emitter base junction के forward bias के कारण कुछ करेंट base टर्मिनल से emitter region की ओर जाती है जिसे base current (IB) कहा जाता है ।
Base region मे बचे बाकी free electron collector region की ओर move होती है एवं इससे बनने वाले current को collector current (IC) कहा जाता है।
आइए npn transister की total current को निकलते हैं।
NPN transister मे जितनी भी emitter current की मात्रा होती है उनमे से कुछ करेंट base region के टर्मिनल से आती है और कुछ करेंट collector region से आती है।
इसलिए,
Emitter की total current
IE = IB + IC समीकरण–3
अब collector की total current
IC = IE - IB समीकरण–4
PNP ट्रांजिस्टर और NPN ट्रांजिस्टर की समीकरण 1,2,3 एवं 4 द्वारा हम ये निष्कर्ष निकाल सकते है की PNP ट्रांजिस्टर और NPN ट्रांजिस्टर की output result एक ही समान है।
FET transistor kya hai
FET = Field Effect Transistor
Field Effect Transistor एक प्रकार की unipolar junction transister है। Unipolar का मतलब होता है एक ही charge कैरियर ।अर्थात unipolar junction transister मे केवल इलेक्ट्रॉन चार्ज कैरियर हो सकता है या holes चार्ज कैरियर हो सकता है इनमे से कोई एक चार्ज कैरियर से ही fet transister या field effect transister को बनाया जाता है।
Field Effect Transistor मे तीन टर्मिनल होते है– source, gate & drain ।
Transistor का उपयोग क्या है ? (application)
ट्रांजिस्टर का सबसे ज्यादा उपयोग एवं important उपयोग computer और मोबाइल के प्रोसेसर (CPU) को बनाने में किया जाता है।
ट्रांजिस्टर का दूसरा उपयोग सबसे ज्यादा digital electronics circuit को बनाने में किया जाता है।
ट्रांजिस्टर का उपयोग Logic Gate को बनाने में किया जाता है।
FAQ’s ट्रांजिस्टर से संबंधित
ट्रांजिस्टर का क्या अर्थ है?
ट्रांजिस्टर दो शब्द transfer & resistance से मिलकर बनी है एवं जिसका अर्थ है resistance मे बदलाव जिसके परिणामस्वरूप करेंट को नियंत्रित किया जा सकता है।
ट्रांजिस्टर में कितने जंक्शन होते हैं?
BJT ट्रांजिस्टर में दो जंक्शन होते है।
ट्रांजिस्टर का मुख्य कार्य क्या होता है?
ट्रांजिस्टर का मुख्य कार्य इलेक्ट्रिक सिग्नल को amplify एवं स्विचिंग करना है।
ट्रांजिस्टर कितने प्रकार के होते हैं?
ट्रांजिस्टर को मुख्यत: दो भागो में बांटा गया है – 1.BJT– PNP & NPN ट्रांजिस्टर
2.FET – JFET , MOSFET ट्रांजिस्टर
BJT ट्रांजिस्टर में कितने टर्मिनल होते हैं?
BJT ट्रांजिस्टर 3 टर्मिनल होते हैं। Base, emitter और collector टर्मिनल होती है।